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स्कूल के दिन

ना जाने हम कब बड़े हो गए ? स्कूल के दिन न जाने कहाँ

खो गए ? दोस्तों की बातें जब भी याद आती है । आँखों में नमी सी छा जाती है । वो दोस्तों की गपसप, वो दोस्तों से लड़ना । टीचर के डाटने पर, छुप-छुप के हँसना । हर राह में दोस्तों का साथ निभाना । सही और गलत की पहचान कराना । वो अपना लंच छुपा कर खाना । वो दोस्तों का लंच झट से चट कर जाना । वो दोस्त के बीमार होने पर, उसको देखने जाना । वो उसका छुटा हुआ होमवर्क, खुद करके टीचर को दिखाना । कभी-कभी कोई बहाना बनाकर स्कूल न जाना | और स्कूल जाते हीं छुट्टी होने की राह देखना | कोई शरारत करके मासूम सा चेहरा बनाना | सबसे छुपकर कक्षा में उत्पात मचाना | कभी-कभी किसी दोस्त को मिलकर सताना | अपने दोस्त के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाना | दोस्तों के साथ हर दिन स्कूल आना-जाना | कभी-कभी घर देर पहुँचने पर माँ की डांट खाना | वो स्कूल के पल लौटकर ना आएंगे । हम बस उनको याद करके ही खुश हो जाएंगे ।


 
 
 

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